आखिर नेट जीरो क्या है? यह अवधारणा कहां से आई?


आखिर नेट जीरो क्या है? यह अवधारणा कहां से आई?

वास्तव में 'नेट ज़ीरो' क्या है, और यह अवधारणा कहाँ से आई? शुरू से ही, वैज्ञानिकों और सरकारों ने माना कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना समीकरण का केवल एक पक्ष था। उत्सर्जन की भरपाई या भरपाई करने के तरीके खोजना भी आवश्यक होगा। क्योटो प्रोटोकॉल की बाद की बातचीत ने वैश्विक कार्बन चक्र में कार्बन सिंक के रूप में वनों की भूमिका का समर्थन किया। इसने अच्छे वन वाले विकासशील देशों को उभरते कार्बन ऑफसेट बाजार में भाग लेने और कार्बन तटस्थता के कार्बन लेखांकन लक्ष्य तक पहुंचने में अपनी भूमिका निभाने का साधन भी प्रदान किया। उन शतों के तहत, क्योटो प्रोटोकॉल के अधीन औद्योगिक देश कम लागत वाले शमन के रूप में अपने स्वयं के उत्सर्जन की भरपाई के लिए विकासशील देशों को भुगतान कर सकते हैं। क्योटो प्रोटोकॉल बढ़ते वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में असमर्थ था, और एक उत्तराधिकारी समझौता अनिश्चत दिखाई दिया।परिणाम स्वरूप, 2000 के दशक के अंत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को हटाने के लिए अत्यधिक विवादास्पद जियो इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करने की संभावना की ओर रुचि बढ़ी।

Main point:-


◾Net zero क्या है?

"Net zero" का मतलब है वह समय जब वायुमंडल में पैदा होने वाले हरित घासों की मात्रा और उन्हें हटाया जाने वाले की मात्रा के बीच का संतुलन। इसे एमीशन कम करके और वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाकर प्राप्त किया जाता है, अक्सर पौधरोपण, कार्बन कैप्चर, और नवीन ऊर्जा जैसी विधियों के माध्यम से। इसका अर्थ है कि हम परत या संतुलित करते हैं जो हम उत्पन्न करते हैं और वायुमंडल से हटा देते हैं।


◾ये अवधारणा कहां से आई है?

"नेट जीरो" अवधारणा जैसे कार्बन आउटसेटिंग, प्राकृतिक संवर्धन, और पर्यावरणीय बदलाव के संदर्भ में साझा हो गई है। यह वैज्ञानिक समुदायों और शासकीय नीतियों द्वारा पर्यावरणीय संतुलन को प्रोत्साहित करने के लिए उत्पन्न हुआ है। इस विचार का प्रारंभिक विकास 1970 के दशक में हुआ था, जब लोग पर्यावरण संरक्षण की महत्वाकांक्षा को उत्साहित करने लगे।


◾2000 के अंतर गत क्या हुआ?

2000 के बाद, "नेट जीरो" की अवधारणा और मान्यता में वृद्धि हुई है, खासकर पर्यावरणीय परिवर्तन के लिए क्रियाशील कदम उठाने की चुनौतियों के संदर्भ में। समुदायों और राष्ट्रों ने पारिस समझौता (2015) में ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस एमिशन्स को नेट जीरो तक कम करने का लक्ष्य साझा किया है, जिसने इस अवधारणा को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है।

                                                     और वर्तमान में 

वर्तमान में, क्योटो प्रोटोकॉल का परिणाम सामने आ रहा है और उसका विस्तारित स्थानांतरण, यानी उसके बाद के समझौतों की जरूरत महसूस हो रही है। पारिस समझौता 2015 में एक नया मार्गदर्शन स्थापित किया गया है, जिसमें विकसित और विकासशील देश दोनों को ग्रीनहाउस गैसों की नियंत्रण के लिए समान जिम्मेदारी स्वीकार की गई है। इससे साथ ही, अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौते और पहल भी चल रही हैं जो कि ग्लोबल जलवायु परिवर्तन के मुकाबले में महत्वपूर्ण हैं।


◾जियोइंजीनियरिंग क्या थी?

जियो इंजिनियरिंग, या जलवायु इंजिनियरिंग, जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों का अध्ययन करने वाली एक अनुशाखा है। इसमें जलवायु संबंधी जानकारी, नक्शा, मॉडलिंग, और पूर्वानुमान की तकनीकें शामिल होती हैं, ताकि समुद्र स्तर, मौसम परिवर्तन, और अन्य जलवायु परिवर्तनों के असरों का अध्ययन किया जा सके। इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को समझना और उनका संभावित प्रभाव कम करने के लिए नीतियों का विकास करना होता है।








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